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ભારતીય ગણિતમાં પાઈ

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भारतीय गणित में पाई भारत में ई. पूर्व ६०० में शुल्ब सूत्रों (संस्कृत ग्रन्थ और वेद जो गणितिय गणनाओं में बहुत पहुँचे हुए हैं।) में π को (९७८५/५५६८)२ ≈ ३.०८८ लिखा गया है। ई. पूर्व १५९ अथवा शायद इससे भी पहले में भारतीय स्रोत π को {\displaystyle \scriptstyle {\sqrt {10}}} {\displaystyle \scriptstyle {\sqrt {10}}} ≈ ३.१६२२ लिखते थे। आर्यभट ने निम्नलिखित श्लोक में पाई का मान दिया है- ''चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्त्राणाम्। अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्य आसन्नौ वृत्तपरिणाहः॥'' १०० में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर ६२००० जोड़ें। इस नियम से २०००० परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है। ( (१००+४)*८+६२०००/२००००=३.१४१६ ) इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात ((४ + १००) × ८ + ६२०००) / २०००० = ३.१४१६ है, जो दशमलव के पाँच अंकों तक बिलकुल टीक है। ** इसके अनुसार Circumference और Diameter का अनुपात ((४ + १००) × ८ + ६२०००) / २०००० = ३.१४१६ है, जो दशमलव के पाँच अंकों तक बिलकुल टीक है। शंकर वर्मन ने सद्रत्नमाला में पाई का मान निम्नलिखित श्लोक में दिया है,